उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट के TET आदेश का विरोध, योगी आदित्यनाथ ने किया रिव्यू का आदेश

उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट के TET आदेश का विरोध, योगी आदित्यनाथ ने किया रिव्यू का आदेश अक्तू॰, 7 2025

जब सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को सभी सेवा में रहने वाले शिक्षकों पर TET पास करने की शर्त लगाई, तो उत्तर प्रदेश के लगभग चार‑लाख शिक्षकों ने तुरंत विरोध प्रदर्शन कर दिया। इस आदेश को लेकर कड़ाई से असहमत राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक एजुकेशन विभाग को रिव्यू पेटीशन दाखिल करने का निर्देश दिया।

प्रदर्शन का व्यापक दायरा और मुख्य स्थल

रैबाडी, प्रयागराज, गाज़ीपुर, और मेराठ आदि जिलों में शिक्षक संघों ने एकजुट स्वर में धरने रखे। विशेष रूप से रैबाड़ी में सोमवार को बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, जहाँ रचनात्मक रूप से नकाब और प्लैकर्ड से अपने असंतोष को व्यक्त किया गया।

राष्ट्रिय शैक्षिक महा संघ (RSM) की भूमिका

राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ (RSM) ने सामूहिक कार्रवाई को राष्ट्रीय स्तर की अभियान का हिस्सा बनाया। संघ के राज्य अध्यक्ष शिव शंकर सिंह, राज्य अध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ ने बताया कि 1997 के पूर्व भर्ती किए गए लगभग चार‑लाख शिक्षक, जब RTE (दर्शन अधिकार अधिनियम) लागू हुआ तब उनका नामांकन आधिकारिक था, इसलिए अब TET लादना उनके गरिमा के खिलाफ है।

जिला स्तर के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह, जिला अध्यक्ष ने कहा, “यह आदेश ‘अन्याय’ है; अधिकांश शिक्षकों की आयु 50‑60 वर्ष है, वे अब परीक्षा के लिए तैयार नहीं हैं, और अगर इस दिशा में बदलाव नहीं हुआ तो कई लोग पूर्व‑सेवानिवृत्ति या नौकरी छूटने की स्थिति में पहुँच सकते हैं।”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश इसलिए दिया क्योंकि पिछले वर्षों में कई राज्यों में TET के बिना सेवा में नियुक्त शिक्षक पाए गए थे, जो कि ‘शिक्षक पात्रता’ के मानकों को कमजोर करता था। लेकिन उत्तर प्रदेश में 1994 के आरक्षण अधिनियम, 2010 के RTE अधिनियम आदि के तहत कई शिक्षक पूर्व‑भर्ती किए गए थे, जिन्होंने प्रासंगिक प्रशिक्षण और सेवा‑उपलब्धियों के साथ कार्य किया।

उसी समय, अलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13 अगस्त 2024 को 6,800 आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की सूची को रद्द कर दिया था, क्योंकि आरक्षण प्रक्रिया में गड़बड़ी पाई गई थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने फिर से सूची जारी करने की कोशिश की, जिससे सुप्रीम कोर्ट में 69,000 सहायक शिक्षक पदों की भर्ती का मामला लगभग दो साल से लटका हुआ है।

सरकार के उत्तर और भविष्य की योजनाएँ

मुख्यमंत्री के कार्यालय ने कहा कि शिक्षकों का अनुभव और प्रशिक्षण “अत्यधिक मूल्यवान” है, और TET के बिना उनकी योग्यताओं को कम आंकना न्यायसंगत नहीं। इस कारण विभाग को “रिव्यू पेटीशन” दाखिल करने का निर्देश दिया गया है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संशोधित या रद्द करने की संभावना बनी रहे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार दो लाख नए शिक्षकों की भर्ती तीन चरणों में नवंबर 2025 से शुरू करने की योजना बना रही है। यह कदम न केवल वर्तमान प्रो-टेस्ट विरोध को कम करेगा, बल्कि 2027 के चुनाव में शैक्षिक मुद्दे को भी सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करेगा।

शिक्षा क्षेत्र में विस्तृत प्रगति और चुनौतियाँ

शिक्षा क्षेत्र में विस्तृत प्रगति और चुनौतियाँ

राज्य में RTE (दर्शन अधिकार) के तहत 2013 में केवल 54 बच्चों की नामांकन थी, जबकि 2025 में यह संख्या 1,85,664 तक पहुँच गई है। हालांकि, यह लाभ केवल कक्षा 8 तक ही सीमित है; उच्च माध्यमिक स्तर में अभी भी बड़े अंतर हैं।

प्रशिक्षण कार्यक्रमों, जैसे “शिक्षक विकास योजना” और “डिजिटल साक्षरता” के माध्यम से, कई शिक्षक नई तकनीकों से सुसज्जित हो रहे हैं, पर TET की अनिवार्यता ने उनकी मौजूदा कौशल को ‘कटऑफ’ करने जैसा महसूस कराया है।

आगे क्या हो सकता है?

यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश जारी रहता है, तो कई अनुभवी शिक्षक नौकरी से बाहर हो सकते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक‑छत्र अनुपात बिगड़ सकता है। दूसरी ओर, यदि रिव्यू पेटीशन सफल होता है, तो उत्तर प्रदेश सरकार को व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि कई राज्य‑स्तर के शिक्षक संघ समान मांगें रख रहे हैं।

सभी संकेत यह देते हैं कि इस समस्या का समाधान न केवल कानूनी पहलू से, बल्कि नीति‑निर्माण, प्रशिक्षण, और भर्ती प्रक्रियाओं के पुनर्मूल्यांकन से होना आवश्यक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या सभी उत्तर प्रदेश के शिक्षकों को TET पास करना अनिवार्य है?

सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को आदेश दिया कि सभी वर्तमान में कार्यरत शिक्षक, चाहे वे किस वर्ष में नियुक्त हुए हों, को TET पास करना होगा। हालांकि, राज्य सरकार इस आदेश पर रिव्यू पेटीशन दर्ज कर रही है, जिससे भविष्य में पूर्व‑भर्तियों के लिए छूट मिल सकती है।

RSM के इस विरोध में प्रमुख मांगें क्या हैं?

राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ (RSM) ने पूर्व‑भर्ती किए गए लगभग चार‑लाख शिक्षकों को TET के बाहर रखने, मौजूदा अनुभव को मान्यता देने, और यदि नियम बदलना हो तो चरणबद्ध लागू करने की मांग की है। वे यह भी चाहते हैं कि भविष्य की भर्ती में स्पष्टता और समय‑सारिणी बनाई जाए।

राज्य सरकार की नई भर्ती योजना क्या है?

सरकार ने घोषणा की है कि वह नवंबर 2025 से शुरू होकर तीन चरणों में दो लाख नए शिक्षकों की भर्ती करेगी। यह पहल मुख्यतः उन क्षेत्रों में होगी जहाँ शिक्षक‑छात्र अनुपात अधिक है, और यह 2027 के चुनाव में शिक्षा‑संबंधी प्रदर्शन को सकारात्मक बनाने के लिए भी है।

क्या इस मुद्दे का असर राष्ट्रीय स्तर पर भी हो सकता है?

हां, कई अन्य राज्यों में भी समान टीईटी‑निर्देशों पर विवाद चल रहा है। यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश बन रहता है और राज्य रिव्यू में सफल नहीं होता, तो यह एक राष्ट्रीय शिक्षक आन्दोलन को जन्म दे सकता है, जिसमें कई राज्य‑स्तर के शिक्षक संघ शामिल हो सकते हैं।

इस विवाद से छात्रों के शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि कई अनुभवी शिक्षक नौकरी से बाहर हो जाते हैं तो ग्रामीण और अधिनायक क्षेत्रों में शिक्षक‑छात्र अनुपात बिगड़ सकता है, जिससे वर्गों में पढ़ाई की गुणवत्ता घटेगी। दूसरी ओर, नई भर्ती से यदि प्रशिक्षित और योग्य शिक्षक आएँ तो यह लंबी अवधि में शिक्षा स्तर को ऊँचा उठाने में मदद कर सकता है।

19 टिप्पणि

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    Ashutosh Kumar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 04:06

    जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने TET का आदेश दिया, चार‑लाख शिक्षक खड़े हो गए, और पूरे राज्य में हड़कंप मच गया।

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    ritesh kumar

    अक्तूबर 8, 2025 AT 21:26

    ये सब "उपर्युक्त आदेश" सिर्फ शैक्षिक षड्यंत्र का हिस्सा है, जो हमारे राष्ट्रीय हितों को धूमिल करने की साजिश रचा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे छात्रों को समझाने के लिये नहीं, बल्कि बड़ी हवाओं को शांत करने के लिये लाया गया है।

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    Apu Mistry

    अक्तूबर 10, 2025 AT 14:46

    सोचिए, अगर हम आज की पीढ़ी को कभी नहीं सिखाएंगे तो कल की परम्परा भी प्रलय में डूब जाएगी। TET को बाध्य करने से न केवल अनुभवी शिक्षक खारेज होंगे, बल्कि शिक्षा का मूल सार भी क्षीण हो जाएगा। यह एक दार्शनिक द्वंद्व है-प्रलेखन बनाम अनुभूति।

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    uday goud

    अक्तूबर 12, 2025 AT 08:06

    शिक्षा केवल नियमों की बिनबुन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का वह पुल है जो नौजवानों को भविष्य से जोड़ता है। सोचिए, यदि हमने उन अनुभवी शिक्षकों को हटाया तो ग्रामीण विद्यालयों में ज्ञान का दीप किसे दिखेगा? इस कारण, TET को अनिवार्य बनाना सामाजिक असमानता को अधिक गहरा करेगा।

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    Harsh Kumar

    अक्तूबर 14, 2025 AT 01:26

    सरकार की पहल सराहनीय है, लेकिन हमें संतुलन ढूँढ़ना होगा 😊। शिक्षकों के अनुभव को पूरी तरह नजरअंदाज करना सही नहीं लगता। एक ठोस समाधान में दोनों पहलुओं को समायोजित किया जाना चाहिए।

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    suchi gaur

    अक्तूबर 15, 2025 AT 18:46

    वास्तव में, यह मुद्दा बहुत परिष्कृत है और इसे केवल राजनीतिक मंच पर नहीं उठाया जा सकता। हमें गहराई से विश्लेषण करना चाहिये कि क्या यह आदेश वास्तव में शैक्षणिक मानकों को बढ़ाएगा या फिर सभी के लिए एक समान बोझ बन जाएगा।

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    Rajan India

    अक्तूबर 17, 2025 AT 12:06

    जैसे ही मैं इस खबर पढ़ रहा था, आसपास के कई शिक्षक भी अपने-अपने विचार व्यक्त कर रहे थे-कभी कड़वे, कभी आशावादी। असल में, यह मामला सामाजिक संतुलन का जिक्र करता है, न कि सिर्फ कानूनी नियम का।

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    Parul Saxena

    अक्तूबर 19, 2025 AT 05:26

    सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि शिक्षा प्रणाली एक जटिल जीव है, जिसमें विभिन्न वर्गों और आयु समूहों के हित जुड़े होते हैं। जब हम एक बड़े स्तर के बदलाव की बात करते हैं, तो हमें यह देखना चाहिए कि वह बदलाव किस तरह से उन अनुभवी शिक्षकों को प्रभावित करेगा जो दशकों से इस क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं।
    दूसरे, TET जैसी परीक्षा का उद्देश्य गुणवत्ता सुनिश्चित करना है, लेकिन इस प्रक्रिया में हम अक्सर व्यावहारिक अनुभव को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जो कि समान रूप से महत्वपूर्ण है।
    तीसरे, अगर हम केवल दस्तावेज़ी योग्यता पर ही बल देते हैं, तो भौगोलिक और सामाजिक विविधता को नजरअंदाज़ किया जा सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुँच में कमी आ सकती है।
    इसके अलावा, इस तरह की नीति के लागू होने पर कई वरिष्ठ शिक्षक अपनी नौकरी से बर्खास्त हो सकते हैं, जिससे शिक्षक‑छात्र अनुपात घटेगा और छात्रों की सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होगी।
    चौथे, राष्ट्रीय स्तर पर कई राज्य अपने-अपने शिक्षकों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए समान अधिनियम बना रहे हैं; इसलिए यह एक सामूहिक संघर्ष बन सकता है।
    पाँचवें, हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि नई भर्ती प्रक्रिया कैसे कार्यान्वित की जाएगी, क्या वह वास्तविक रूप से योग्य और उत्साही शिक्षकों को आकर्षित करेगी?
    छहवें, सरकार की योजना में नई नियुक्तियों की संख्या उल्लेखनीय है, परन्तु क्या यह पर्याप्त होगा और क्या इन नियुक्तियों में अनुभवी गरिमित शिक्षक शामिल होंगे?
    सातवें, इस दिशा में विचार-विमर्श का एक मंच खुला होना चाहिए, जहाँ सभी संबंधित पक्ष अपनी चिंताएँ और सुझाव रख सकें।
    आठवें, यह आवश्यक है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता रहे, ताकि किसी भी प्रकार के अनुचित लाभ या पक्षपात को रोका जा सके।
    नौवें, राज्य की शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह इस नीति के दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करे और उसके अनुसार समायोजन करे।
    दसवें, अंत में, यह स्पष्ट है कि शिक्षा को केवल एक कागजी नियम से नहीं, बल्कि समग्र विकास के एक प्रमुख स्तम्भ के रूप में देखना चाहिए। इस दृष्टिकोण से ही हम एक संतुलित और निष्पक्ष समाधान तक पहुँच सकते हैं।

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    Ananth Mohan

    अक्तूबर 20, 2025 AT 22:46

    बहुत गहन विश्लेषण है, विशेषकर अनुभवी शिक्षकों की भूमिका को नज़रअंदाज़ न करने की बात सही है। हमें इस दिशा में सामूहिक संवाद की जरूरत है।

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    jyoti igobymyfirstname

    अक्तूबर 22, 2025 AT 16:06

    हाय, जवाब में सिर्फ ड्रामैटिक लाइन नहीं, बल्कि वास्तविक जज्बा भी दिखाना चाहिए। ऐसा आदेश सीखने की प्रक्रिया को तोड़ता है।

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    Zoya Malik

    अक्तूबर 24, 2025 AT 09:26

    ऐसी नीतियों को लागू करने से पहले हमे सामाजिक पक्ष को भी देखना चाहिए, नहीं तो बस कागज पर ही रह जाती हैं।

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    Gurjeet Chhabra

    अक्तूबर 26, 2025 AT 02:46

    सही कहा, सामाजिक प्रभाव के बिना एक नियम का कोई मोल नहीं। हमें इस पर गहरा विचार करना चाहिए।

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    AMRESH KUMAR

    अक्तूबर 27, 2025 AT 20:06

    देश की शैक्षिक सुरक्षा को मजबूत बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, यह आदेश राष्ट्रीय भावना को उजागर करता है। 🇮🇳

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    Raja Rajan

    अक्तूबर 29, 2025 AT 13:26

    जैसे ही हम राष्ट्रीय भावना की बात करते हैं, व्यावहारिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना चाहिए, नहीं तो असंतुलन पैदा हो जाएगा।

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    Atish Gupta

    अक्तूबर 31, 2025 AT 06:46

    शिक्षकों की अनुभवी शक्ति और नई नियुक्तियों का संतुलन ही बेहतर भविष्य की कुंजी है, इसे सुनियोजित रूप में लागू किया जाना चाहिए।

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    Aanchal Talwar

    नवंबर 2, 2025 AT 00:06

    समझ में आता है, लेकिन काम में लाने के लिए स्पष्ट योजना और समयसीमा जरूरी है।

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    Neha Shetty

    नवंबर 3, 2025 AT 17:26

    सभी पक्षों को मिलकर एक मंच पर बात करनी चाहिए, जिससे समाधान सभी के लिए काम करे। यह तभी संभव है जब हम एक-दूसरे की बात सुनें और सम्मान दें।

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    Chirantanjyoti Mudoi

    नवंबर 5, 2025 AT 10:46

    हालांकि, कभी‑कभी विरोधी आवाज़ें ही नई सोच को जन्म देती हैं; इसका मतलब यह नहीं कि हमें सभी की बात माननी चाहिए, परन्तु एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

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    Surya Banerjee

    नवंबर 7, 2025 AT 04:06

    बहुत जरूरी मुद्दा है।

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