सेन्सेक 873 पॉइंट गिरा, विnod नार ने बताया ट्रेड समझौते की देरी से बाजार में सर्दी

सेन्सेक 873 पॉइंट गिरा, विnod नार ने बताया ट्रेड समझौते की देरी से बाजार में सर्दी अक्तू॰, 13 2025

जब Vinod Nair, Head of Research Geojit Investments Limited ने कहा कि प्रीमियम वैल्यूएशन और भारत‑अमेरिका ट्रेड समझौते की देरी से फॉरेन इंटरेस्ट इन्वेस्टर्स (FIIs) अपने पोर्टफोलियो को कम कर सकते हैं, तो वह ठीक उसी दिन, सेन्सेक गिरावट 20 मई 2025मुंबई के मध्य में, भारतीय शेयर बाजार में 873 पॉइंट (1.06 %) की भारी गिरावट देखी गई। यह गिरावट केवल एक आँकड़ा नहीं, बल्कि कई कारकों का जटिल मिश्रण है — वैश्विक अनिश्चितता, महंगाई के बढ़ते दबाव और ट्रेड समझौते की अनिश्चितता।

बाजार की गिरावट का सारांश

बुधवार, 20 मई 2025 को बीएसई सेन्सेक 81,186.44 पर समाप्त हुआ, जबकि एनएफटीवाई 24,683.90 पर गिरा। दोनों सूचकांकों में क्रमशः 873 और 262 पॉइंट की गिरावट दर्ज हुई। इस दौरान National Stock Exchange of India Limited (एनएसई) के मुख्यालय, मुंबई में ट्रेडिंग डेस्कों पर बेचने की लहर यूँ ही नहीं थमी। एचडीएफसी बैंक, रिलायंस इंडस्ट्रीज और आईसीआईसीआई बैंक के शेयरों में विशेष रूप से बड़े गिरावट देखी गई — एचडीएफसी के शेयर 2.4 % नीचे, रिलायंस 2.1 % और आईसीआईसीआई 2.6 % गिरा।

पिछले हफ्ते की उलटफेर: 15 मई की उछाल

क्या भूलते हैं, पाँच दिन पहले, 15 मई को बाजार ने 1,200 पॉइंट (लगभग 1.48 %) की जबरदस्त उछाल मार ली थी। उस दिन बीएसई सेन्सेक 82,530.74 पर बंद हुआ और एनएफटीवाई 25,062.10 तक पहुँच गया। इस उछाल का मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जेड ट्रम्प के दोहा, क़तर में व्यापार कार्यक्रम में किए गए बयानों को माना गया था, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत ‘टैरिफ़ को पूरी तरह हटाने’ को तैयार है। इस आशावादी माहौल ने छोटे‑मध्यम आकार के शेयरों को भी सहजता से ऊपर ले गया, जिससे बेंचमार्क इन्डेक्स में व्यापक भागीदारी देखी गई।

मुख्य कारण और विशेषज्ञों की राय

सेन्सेक के गिरने के पीछे कई कारक हैं। सबसे पहले, वैश्विक बाजारों में एक अचानक ठहराव आया, जब अमेरिका‑चीन के बीच संभावित ट्रेड तदारुस्ती के संकेत मिले, फिर भी निवेशक सतर्क रहे। दूसरा, भारत‑अमेरिका ट्रेड समझौते में अभी भी कुछ प्रमुख शर्तें टल रही हैं, जिससे FIIs की खरीद‑बिक्री में संकोच बढ़ा।
Vinod Nair ने कहा, “प्रिमियम वैल्यूएशन और समझौते की देरी के कारण हम अल्पकालिक कंसॉलिडेशन देख सकते हैं।” इस बयान के साथ ही, आरबीआई (Reserve Bank of India) ने रुपये को स्थिर करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप किया, जबकि एसईबीआई (Securities and Exchange Board of India) ने अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए।

प्रमुख सेक्टरों पर असर

वित्तीय सेवाओं का सेक्टर सबसे अधिक झटके का शिकार बना। एचडीएफसी और आईसीआईसीआई के शेयरों में लगातार गिरावट दिखी, जबकि रिलायंस जैसे बड़े कॉरपोरेशन भी सीमित गिरावट के साथ कठिनाई में थे। आईटी सेक्टर, जो पहले भी वैश्विक निर्यात में अग्रणी रहा, इस बार अपेक्षाकृत स्थिर रहा लेकिन निर्यात–आधारित ग्राहकों की डिमांड में उतार‑चढ़ाव ने कुछ कंपनियों को उलझन में डाल दिया। इसके अलावा, बैंकों की बैलेंस शीट में विदेशी पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स (FPIs) द्वारा इस वर्ष अब तक लगभग USD 13‑15 बिलियन (₹1.1‑1.2 लाख करोड़) के निकासी ने अतिरिक्त दबाव डाला।

आगे क्या उम्मीद करनी चाहिए?

विश्लेषकों का मानना है कि बाजार में अल्पकालिक पुनरुद्धार संभव है, परंतु यह पूरी तरह से भारत‑अमेरिका ट्रेड समझौते की स्पष्टता पर निर्भर करेगा। अगर समझौता जल्दी तय हो जाता है, तो FIIs फिर से खरीद‑बिक्री के मोड में लौट सकते हैं, जिससे बड़े‑कैप स्टॉक्स को समर्थन मिलेगा। दूसरी ओर, यदि वार्ता में और देरी होती है, तो सेंटीमेंट अधिक नकारात्मक रह सकता है और छोटे‑मध्यम कंपनियों की स्टॉक मूल्य तेजी से गिर सकते हैं। RBI और SEBI की आगे की नीतियाँ भी इस दिशा में महत्वपूर्ण रोल अदा करेंगे।

मुख्य तथ्य

  • सेन्सेक 81,186.44 पर बंद, 873 पॉइंट गिराव (1.06 %)
  • एनएफटीवाई 24,683.90 पर बंद, 262 पॉइंट गिराव (1.05 %)
  • Vinod Nair, Geojit Investments Limited के प्रमुख रिसर्च अधिकारी
  • FPIs ने YTD लगभग USD 13‑15 बिलियन निकाले
  • रुपया ₹88 के ऊपर गिर कर रेकॉर्ड तले पहुँचा

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सेन्सेक में इस गिरावट का प्रमुख कारण क्या था?

मुख्य कारण वैश्विक बाजारों में सतर्कता, भारत‑अमेरिका ट्रेड समझौते की अनिश्चितता और FIIs की पोर्टफोलियो कमी थे। इसके अलावा, प्रीमियम वैल्यूएशन ने निवेशकों को अल्पकालिक कंसॉलिडेशन की ओर धकेला।

क्या इस गिरावट से छोटे‑मध्यम कंपनियों को भी नुकसान पहुँचा?

वहीं, छोटे‑मध्यम कैप इंडेक्स ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन कुल मिलाकर बाजार के नकारात्मक मूड ने सभी वर्गों में दबाव पैदा किया। कुछ विशिष्ट स्टॉक्स को 15‑30 % गिरावट झेलनी पड़ी।

फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPIs) का निकासी बाजार पर कैसे असर डाला?

FPIs ने इस साल अब तक लगभग USD 13‑15 बिलियन (₹1.1‑1.2 लाख करोड़) निकाले, जिससे प्राथमिक शेयरों में लिक्विडिटी घट गई और कीमतों पर सीधा दबाव बना। यह निकासी रुपये की कमजोरी में भी भूमिका निभाई।

आगे के महीनों में निवेशकों को क्या देखना चाहिए?

निवेशकों को भारत‑अमेरिका ट्रेड समझौते की प्रगति, RBI और SEBI की नीतियों, तथा वैश्विक बाजार के संकेतों पर नज़र रखनी चाहिए। यदि समझौता साफ़ हो जाता है, तो बाजार में पुनः रुचि लौट सकती है; अन्यथा, अस्थिरता बनी रह सकती है।

1 Comment

  • Image placeholder

    SIDDHARTH CHELLADURAI

    अक्तूबर 13, 2025 AT 22:51

    आज की गिरावट को देखते हुए, आपस में सहयोग करना ज़रूरी है 😊। फंड्स रिडिस्ट्रिब्यूशन की रणनीति अपनाएँ, डाइवर्सिफ़िकेशन से जोखिम कम होगा। छोटे‑मध्यम कैप में संभावनाएँ अभी भी हैं, इसलिए धैर्य रखें 💪।

एक टिप्पणी लिखें