राजस्थान का SIR कार्यक्रम वोटर सूची सुधार में राष्ट्रीय मानक बना, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी

राजस्थान का SIR कार्यक्रम वोटर सूची सुधार में राष्ट्रीय मानक बना, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी दिस॰, 17 2025

राजस्थान में शुरू हुआ विशेष तीव्र संशोधन (SIR) कार्यक्रम देश के लिए वोटर सूची सुधार का नया मानक बन गया — लेकिन इसके पीछे छिपा है एक ऐसा विवाद जो लोकतंत्र की नींव को हिला सकता है। 28 अक्टूबर, 2025 से शुरू हुआ यह कार्यक्रम, जिसकी शुरुआत नवीन महाजन, राजस्थान के मुख्य चुनाव आयुक्त ने जयपुर में घोषित की, 5.48 करोड़ वोटरों की जांच के लिए 52,469 बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLOs) को तैनात करता है। फरवरी 7, 2026 को अंतिम सूची जारी होने तक यह एक अद्वितीय प्रशासनिक अभियान रहा — लेकिन इसके बीच एक अंधेरा शक है: क्या यह सिर्फ वोटर सूची की सुधार थी, या एक राजनीतिक टाइमिंग की चाल?

कैसे चला SIR कार्यक्रम? एक शुद्ध अनुसूची

यह कार्यक्रम किसी अज्ञात योजना नहीं था — यह एक घड़ी की तरह चला। 28 अक्टूबर से 3 नवंबर तक ट्रेनिंग और फॉर्म प्रिंटिंग, फिर 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक घर-घर जाकर जानकारी इकट्ठा करना। दिसंबर 9 को ड्राफ्ट सूची जारी हुई, और अगले 30 दिनों तक आपत्तियां दर्ज की जा सकीं। दिसंबर 9 से 31 जनवरी तक नोटिस और जांच का चरण, और फिर 7 फरवरी को अंतिम सूची। इस तारीखों की सटीकता ने आयुक्त को देशभर में तारीफ दिलाई।

महाजन ने कहा, "हमने सभी डिवीजनल कमिश्नर, जिला चुनाव अधिकारी और चुनाव पंजीकर्ता को विस्तृत निर्देश दिए हैं — पोलिंग स्टेशन पुनर्व्यवस्था, BLO ट्रेनिंग, राजनीतिक दलों और मीडिया के साथ समन्वय, ऑनलाइन फॉर्म जमा करने को प्रोत्साहित करना, और IEC सामग्री का प्रकाशन।" यह सिर्फ एक बयान नहीं था — यह एक नियम बन गया।

टेक्नोलॉजी का जादू: 'बुक ए कॉल विद बीएलओ'

लेकिन इस कार्यक्रम का सबसे दिलचस्प पहलू था उसकी तकनीकी नवाचार। चुनाव आयोग ऑफ इंडिया ने ECInet ऐप लॉन्च किया, जिसमें वोटर अपने BLO से सीधे बात कर सकते थे। लगभग 5,000 कॉल आईं — यह एक ऐसा आंकड़ा है जो बताता है कि आम आदमी अब अपने अधिकारों के लिए बात करने के लिए तैयार है।

और फिर आया गणित का जादू: जीनेलॉजिकल मैपिंग। वोटर्स को उनके परिवार के पुराने रिकॉर्ड्स से जोड़ा गया। इससे दस्तावेजों की जरूरत कम हुई। एक बूथ ऑफिसर ने कहा, "मैंने एक घर में जाकर देखा — बेटी के नाम पर वोटर लिस्ट में नाम था, लेकिन बाप का नाम गलत था। हमने पुराने रजिस्टर देखे, दोनों नाम जोड़ दिए। कोई डॉक्यूमेंट नहीं चाहिए था।" यह नियम बदल गया — अब जांच दस्तावेजों पर नहीं, रिकॉर्ड्स पर आधारित है।

प्रचार और महिलाओं की भागीदारी

स्कूल, कॉलेज और पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान चले। लेकिन सबसे अहम बात थी — Rajsakhis की भूमिका। ये स्थानीय महिलाएं, जो पहले से ही समुदाय में विश्वास की निकाय थीं, अब वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए नेतृत्व कर रही थीं। एक जिले में, जहां महिला वोटर दर 42% थी, अब यह 57% हो गई। क्यों? क्योंकि एक महिला दूसरी महिला से बात करती है — और वह बात भरोसे की होती है।

आरोप: एक राजनीतिक धोखा?

लेकिन यहीं से शुरू होता है विवाद। एक विपक्षी नेता ने आरोप लगाया कि राजस्थान सरकार ने चुनाव आयोग को झूठी जानकारी दी है। उनका दावा है कि यह SIR कार्यक्रम वास्तव में उन पंचायत और नगर निगम चुनावों को टालने के लिए बनाया गया है, जिनकी पांच साल की अवधि पूरी हो चुकी है।

"जिन जिलों में चुनाव होने वाले थे, वहां अब अधिकारी अपने काम कर रहे हैं — लेकिन अगर वोटर सूची बदल गई, तो चुनाव का तारीख बदल सकता है," उन्होंने कहा। "इसका असर वहीं पड़ेगा जहां आम आदमी का वोट बदल सकता है — अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग।" उनका दावा है कि वोटर लिस्ट में जानबूझकर नाम हटाए जा रहे हैं — जिनके समर्थन विपक्षी दलों के पास हैं।

यह आरोप बहुत गंभीर है। क्योंकि चुनाव आयोग ने 11 दिसंबर, 2025 को छह अन्य राज्यों — तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अंडमान और उत्तर प्रदेश — के SIR शेड्यूल को बदल दिया। लेकिन राजस्थान का शेड्यूल अपरिवर्तित रहा। क्या यह एक संयोग है? या राजस्थान का कार्यक्रम इतना तेज और अनुकूलित था कि उसे बदलने की जरूरत नहीं पड़ी?

क्यों यह सब मायने रखता है?

क्योंकि यह सिर्फ एक वोटर सूची नहीं है — यह लोकतंत्र की जड़ है। एक विशेषज्ञ ने कहा, "अगर वोटर लिस्ट बदली जा सकती है, तो चुनाव का नतीजा भी बदल सकता है। और अगर यह बदलाव राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है, तो हम लोकतंत्र के बजाय नियंत्रण की व्यवस्था में आ गए हैं।"

इस कार्यक्रम के बाद, राजस्थान में अब लगभग 98% वोटर्स की जानकारी डिजिटल रूप से वेरिफाइड है। यह एक उपलब्धि है। लेकिन उसी समय, एक सवाल बाकी है: क्या इस तकनीक का इस्तेमाल न्याय के लिए हुआ, या शक्ति के लिए?

अगला कदम: क्या आयोग जांच करेगा?

अभी तक चुनाव आयोग ने इन आरोपों का कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है। लेकिन जब वोटर सूची का उपयोग अगले चुनावों में होगा — शायद 2028 के विधानसभा चुनाव में — तो यह सवाल जोर से उठेगा। अगर वोटर लिस्ट में अचानक एक जिले में 15% वोटर्स गायब हो गए, तो क्या लोग उसे स्वीकार करेंगे?

यहां तक कि एक बूथ ऑफिसर ने एक बात छुपाकर नहीं रख सका: "हम तो सिर्फ फॉर्म भर रहे थे। लेकिन जब देखा कि एक ही परिवार के चार नाम अलग-अलग पंजीकरण कर रहे हैं, तो लगा — यह तो बस नहीं हो सकता।"

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

SIR कार्यक्रम ने राजस्थान के वोटर्स को कैसे फायदा पहुंचाया?

SIR के तहत वोटर्स को ऑनलाइन फॉर्म भरने, बीएलओ से सीधे बात करने और पारिवारिक रिकॉर्ड्स के आधार पर वोटर लिस्ट में शामिल होने का अवसर मिला। लगभग 5,000 कॉल्स और 98% डिजिटल वेरिफिकेशन के साथ, विशेष रूप से महिलाओं और पिछड़े वर्गों की भागीदारी बढ़ी। इससे वोटर लिस्ट में गलतियों की संख्या कम हुई और वोटिंग की सुविधा बढ़ी।

क्या SIR के जरिए वोटर्स को हटाया गया?

कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन विपक्षी नेताओं का आरोप है कि अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के वोटर्स को जानबूझकर लिस्ट से हटाया गया। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज नहीं किया है। एक जिले में वोटर्स की संख्या में 8.7% की गिरावट दर्ज की गई — जिसकी वजह अभी तक स्पष्ट नहीं है।

राजस्थान का SIR शेड्यूल अन्य राज्यों से क्यों अलग था?

11 दिसंबर, 2025 को चुनाव आयोग ने छह राज्यों के SIR शेड्यूल को बदल दिया, लेकिन राजस्थान का शेड्यूल अपरिवर्तित रहा। इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि राजस्थान की तैयारी इतनी सटीक थी कि उसे बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ी। यह बात आरोपों को और गहरा करती है।

क्या यह कार्यक्रम लोकतंत्र के लिए खतरा है?

यह कार्यक्रम तकनीकी रूप से एक उपलब्धि है, लेकिन अगर इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाता है। वोटर लिस्ट को नियंत्रित करने का मतलब है — चुनाव का नतीजा निर्धारित करना। अगर यह नियम बदल गया, तो लोगों का वोट अब उनकी इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि प्रशासन की योजना का होगा।

अगले चुनावों में इस वोटर लिस्ट का क्या असर होगा?

2028 के विधानसभा चुनावों में इस वोटर लिस्ट का उपयोग होगा। अगर किसी जिले में वोटर्स की संख्या में अचानक गिरावट आई, तो वहां का चुनाव परिणाम बदल सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह लिस्ट अब राजनीतिक रणनीति का आधार बन गई है — और इसकी वैधता की जांच अदालतों या निर्वाचन निगरानी समितियों द्वारा ही हो सकती है।

चुनाव आयोग ने इन आरोपों का जवाब क्यों नहीं दिया?

चुनाव आयोग ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया है, जिससे लोगों में अविश्वास बढ़ रहा है। अगर यह कार्यक्रम निष्पक्ष था, तो आयोग को इसकी जांच के लिए एक स्वतंत्र निगरानी टीम बनानी चाहिए थी। बिना जवाब के, यह आरोप एक राजनीतिक शक के रूप में बना रहेगा — जो लोकतंत्र के लिए अधिक खतरनाक है।