मनमोहन सिंह के स्मृति स्थल पर परिवार ने दी अंतिम मंज़ूरी
सित॰, 27 2025
डॉ. मनमोहन सिंह के परिजनों ने आखिरकार सरकार को संकेत दे दिया कि उनका स्मृति स्थल राष्ट्रीय स्मृति स्थल (Rashtriya Smriti Sthal) में बनना चाहिए। यह खबर कई हफ्तों की चर्चाओं के बाद आई, जब पत्नी गुरशरण कौर ने आधिकारिक स्वीकृति पत्र भेजा और बेटी‑बेटियों ने साइट का निरिक्षण किया।
परिवार का फैसला और आगे का कदम
गुरशरण कौर ने पत्र में स्पष्ट किया कि वे इस प्रस्तावित 900 वर्ग मीटर की जगह को स्वीकार करती हैं। उनके साथ बेटी उपीन्दर सिंह और दमन सिंह, तथा उनके पति‑पत्नी ने भी जमीन के हर कोने को देख लिया। उपीन्दर ने बताया कि अब परिवार एक ट्रस्ट बनाएगा, जो स्मृति स्थल के निर्माण को नियंत्रित करेगा। इस ट्रस्ट को सरकार से एक बार के लिए 25 लाख रुपये तक का अनुदान मिलने की संभावना है, जो बाकी सभी राष्ट्रीय स्मृति स्थलों में समान रूप से लागू होता है।
स्मारक निर्माण की प्रक्रिया और वित्तीय सहायता
राष्ट्र स्मृति स्थल एक ऐसा परिसर है, जहाँ भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों और प्रधान मंत्रियों के समाधि स्थित हैं। 2013 में, जब सिंह खुद प्रधानमंत्री थे, तब ही इस स्थल की अवधारणा को मंज़ूरी मिली थी, ताकि अलग‑अलग स्मारकों की जगह न हो और एक समान राष्ट्रीय भूतल बन सके। अब वही योजना उनके लिये भी पूरी हो रही है – उनकी स्मृति स्थल आखिरी में से एक बन जाएगी, जो इस परिसर के दो खाली प्लॉटों में से एक में रखी जाएगी।
कंप्लेक्स में पहले से ही कई प्रमुख नेताओं की स्मृति स्थल स्थित हैं, जैसे:
- पूर्व राष्ट्रपति जैल सिंह
- पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा
- पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर
- पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुशवाहा गुजरल
- पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव
इनके बगल में अभी प्राणब मुखर्जी (2020 में स्वर्गविधि) के परिवार को भी एक प्लॉट दिया गया है। सिंह की स्मृति स्थल का स्थान इन सभी के बीच में ही तय किया गया है, जिससे यह एक बड़े राष्ट्रीय इतिहास का हिस्सा बन जाती है।
स्मारक का निर्माण मंत्रालय ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स की देखरेख में होगा, जबकि निर्माण कार्य सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (CPWD) द्वारा किया जाएगा। यह दो संस्थाएँ पहले भी इस परिसर में कई यादगार संरचनाओं को तैयार कर चुकी हैं, इसलिए प्रक्रिया अपेक्षाकृत सुगम रहने की उम्मीद है।
परिवार ने बताया कि वे जल्द ही एक ट्रस्ट स्थापित करेंगे, जिसके तहत निर्माण कार्य, रख‑रखाव और भविष्य की देखभाल का बजट तय होगा। इस ट्रस्ट के माध्यम से वे सरकारी अनुदान के साथ-साथ निजी दान भी एकत्र करेंगे, जिससे स्मारक का न्यूनतम खर्च में पूरा होना संभव हो सके।
डॉ. मनमोहन सिंह को 26 दिसम्बर 2024 को इस पृथ्वी से विदा किया गया था, और उनके अंतिम संस्कार नीरगंध गेट पर 28 दिसम्बर को आयोजित हुए। उनका स्मृति स्थल अभी निर्माणाधीन है, इसलिए इस समय उनके परिवार को साइट देख कर इस निर्णय तक पहुँचना पड़ा।
यह स्मारक केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक भी होगा – भारत की आर्थिक उदारीकरण की दिशा को जो उन्होंने 1991 में शुरू किया था, उसका स्मरण। इससे आने वाली पीढ़ी को यह याद रहेगा कि कैसे एक छोटे राजनेता ने भारत को वैश्विक मंच पर फिर से जगह दिलाई।
स्मारक के निर्माण से पहले, कांग्रेस के अध्यक्ष मलिकरजुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस जगह के लिए अनुरोध किया था। सरकार ने पहले दो सटे हुए प्लॉटों का प्रस्ताव रखा था, और अब परिवार ने उनमें से एक को स्वीकार कर लिया है। इस तरह, कई महीनों की जटिल बातचीत के बाद, इस राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर एक और महत्वपूर्ण अध्याय लिखने को तैयार है।
जैसे ही ट्रस्ट की स्थापना पूरी होगी और प्रारम्भिक धनराशि जमा हो जाएगी, निर्माण कार्य शुरू होने की सम्भावना है। इस दौरान, सार्वजनिक रूप से इस स्थल की प्रगति की जानकारी भी जारी की जाएगी, ताकि सभी को यह पता चले कि कैसे मनमोहन सिंह स्मृति स्थल राष्ट्रीय स्मृति स्थल में रूप ले रहा है।
prakash purohit
सितंबर 27, 2025 AT 07:46स्मृति स्थल की मंज़ूरी के पीछे छिपे हुए राज़ों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार ऐसे बड़े प्रोजेक्ट्स में अक्सर कुछ गुप्त एजेंडा रखती है, जो आम जनता को नहीं पता चलता। इस स्मारक को राष्ट्रीय स्मृति स्थल में रखना शायद किसी बड़े राजनैतिक समझौते का हिस्सा हो सकता है। यह बात हमारे राष्ट्रीय इतिहास के पुनर्लेखन पर प्रश्नचिह्न लगाती है। आधी रात को लागू किए गए इस निर्णय में संभावित विदेशी वित्तीय हेरफेर भी हो सकता है। इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए और इन कदमों की जड़ तक जाने की कोशिश करनी चाहिए।
Darshan M N
सितंबर 30, 2025 AT 19:06देखा जाए तो परिवार ने आखिरकार अपना स्पष्ट संकेत दे दिया है और अब काम आगे बढ़ेगा। साइट का निरीक्षण कर के परिवार ने ट्रस्ट की बात भी की, जिससे प्रक्रिया आसान होनी चाहिए। सरकार की ओर से अनुदान मिलना भी एक सकारात्मक कदम है। अब बाँकी है निर्माण का समय‑सारिणी और भविष्य में रख‑रखाव की व्यवस्था।
manish mishra
अक्तूबर 4, 2025 AT 06:26स्मरणीय स्थलों को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना हमेशा सही नहीं होता। कई बार हम देखते हैं कि यह राजनीतिक दिखावा बन जाता है। परिवार की स्वीकृति में भी कहीं ना कहीं दबाव जरूर रहा होगा। सरकार की एकरूपी नीति से विविधता की कमी दिखाई देती है।
:)tirumala raja sekhar adari
अक्तूबर 6, 2025 AT 13:59बकवास, बस सरकार का खेल है।
abhishek singh rana
अक्तूबर 11, 2025 AT 05:06सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि इस तरह के स्मृति स्थलों का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई विभागों की भूमिका होती है। स्मारक को CPWD द्वारा बनवाया जाएगा, जिसका मतलब है कि पब्लिक वर्क्स की तकनीकी मानकों का पालन होगा। दूसरी बात, ट्रस्ट की स्थापना से फंडिंग का पारदर्शी प्रबंधन संभव होगा, जिससे अनुदान व निजी दान दोनों का सही उपयोग हो सकेगा। यह भी ध्यान देना चाहिए कि 25 लाख रुपये की प्रारम्भिक सहायता सरकारी नीतियों के तहत सभी राष्ट्रीय स्मृति स्थलों के लिये समान है, इसलिए यह निर्णय निष्पक्ष है। निर्माण के दौरान पर्यावरणीय मंजूरी, भूमि स्वामित्व दस्तावेज़ और स्थानीय समुदाय की सहमति भी आवश्यक होगी। बीते वर्षों में समान परियोजनाओं में समय‑समय पर देरी देखी गई है, इसलिए समय‑सीमा का कड़ा पालन आवश्यक है। तकनीकी रूप से, स्मारक की संरचना में ध्वनि‑अवरोधक और जल‑रोधी सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे दीर्घकालिक रख‑रखाव आसान रहेगा। वित्तीय रूप से, ट्रस्ट को निरंतर आय के स्रोतों की व्यवस्था करनी चाहिए, जैसे कि संग्रहालय टिकट, वार्षिक पुस्तक विमोचन, या संगीतमय कार्यक्रम। इन सभी पहलुओं को मिलाकर अगर हम एक व्यवस्थित योजना बनाते हैं, तो स्मृति स्थल न केवल मान्य इतिहास को संरक्षित करेगा, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को भी प्रेरित करेगा। अंत में, यह याद रखना चाहिए कि स्मृति स्थल का प्रमुख उद्देश्य सम्मान देना है, न कि राजनीतिक उपकरण बनना।
Shashikiran B V
अक्तूबर 13, 2025 AT 12:39पहले वाले ने कहा कि सरकार छिपी हुई योजनाएँ बनाती है, पर असल में यह सब एक बड़े दर्शन‑विचार का भाग है। मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों को राष्ट्रीय स्मृति में शामिल करना एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है, जो बदलते समय के साथ जुड़ती है। यदि हम गहराई से देखें तो यह स्मारक एक विचारधारा की दीवार बन सकता है, जहाँ विभिन्न सिद्धांतों का टकराव होता है। इस प्रकार के निर्माण में अक्सर वह शक्ति काम करती है, जो इतिहास को पुनः लिखना चाहती है।
Sam Sandeep
अक्तूबर 15, 2025 AT 20:13यहां बस दिखावटी बातों का दौर है। परिवार ने स्वीकृति तो दी, पर क्या उनका असली इरादा सिर्फ स्मारक नहीं, बल्कि अपने नाम को राजनीतिक रूप से उभारा जाना है? इस तरह के प्रोजेक्ट्स में अक्सर सतह पर दिखाए गए अच्छे इरादे के पीछे ताकतवर वर्गों की लिच्छा छिपी रहती है।
Ajinkya Chavan
अक्तूबर 18, 2025 AT 03:46सभी को शांतिपूर्ण संवाद के साथ सहयोग करना चाहिए। 1497 वाला बहुत विस्तृत जानकारी दिया, जो वास्तव में मददगार है। ट्रस्ट की स्थापना को लेकर हमें सभी पक्षों को मिलकर काम करना चाहिए, नहीं तो यह पहल कई मोड़ पर फँस सकती है। इसलिए मैं इस दिशा में सभी को समर्थन देता हूँ।
Ashwin Ramteke
अक्तूबर 20, 2025 AT 11:19सही कहा भाई, सहयोग से ही हम आगे बढ़ पाएँगे। निर्माण की तकनीकी चीज़ें और फंडिंग का ढांचा दोनों को मिलजुल कर सहज बनाना पड़ेगा। मैं भी इस प्रक्रिया में मदद करने की कोशिश करूँगा।
Rucha Patel
अक्तूबर 22, 2025 AT 18:53पहले वाले की तरह थोड़ा हल्का-फुल्का नजरिया चाहिए था, लेकिन यहाँ बहुत गंभीरता है। परिवार की स्वीकृति की खबर सुनकर अच्छा लगा, पर आगे की प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूरी है।
Kajal Deokar
अक्तूबर 26, 2025 AT 06:13बहुत ही उत्साहजनक खबर है! यह स्मारक न केवल डॉ. मनमोहन सिंह को सम्मान देगा, बल्कि हमारी युवा पीढ़ी को आर्थिक सुधारों की महत्त्व समझाएगा। आशा करता हूँ कि निर्माण में उच्चतम मानकों का पालन होगा और भविष्य में यह एक प्रेरणा स्रोत बन जाएगा।
Dr Chytra V Anand
अक्तूबर 28, 2025 AT 13:46आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ। इस पहल के पीछे का इतिहास और अर्थ गहराई से समझना आवश्यक है। साथ ही, यह भी देखना होगा कि ट्रस्ट की गवर्नेंस संरचना कितनी पारदर्शी होगी, जिससे हम सबको भरोसा रहे।
Deepak Mittal
अक्तूबर 30, 2025 AT 21:19इसे चोट के वक्त दिखाई जाने वाली सहायता के रूप में देखना चाहिए, लेकिन साथ ही सावधानी से जांचना जरूरी है कि कौन-कौन इस प्रोजेक्ट में असर डाल रहा है। कभी-कभी बड़े नामों के पीछे छिपी हुई शक्ति भी खेलती है।