किरती चक्र से सम्मानित कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी स्मरण में: 'साधारण मौत नहीं मरेंगे'

किरती चक्र से सम्मानित कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी स्मरण में: 'साधारण मौत नहीं मरेंगे' जुल॰, 8 2024

कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत किरती चक्र से सम्मानित

भारत के वीर सपूत कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत किरती चक्र से सम्मानित किया गया, जो हमारे देश का दूसरा सर्वोच्च शांति कालीन वीरता पुरस्कार है। यह सम्मान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा प्रदान किया गया, जिसे उनकी पत्नी स्मृति सिंह ने स्वीकार किया। यह सम्मान समारोह न केवल उनकी वीरता को पहचानता है, बल्कि उन सभी अनुष्ठानों और त्याग को भी स्वीकारता है जो उन्होंने देश की सेवा में किए।

पत्नी स्मृति सिंह का भावुक संदेश

समारोह में अपनी सास मांजू सिंह के साथ खड़ी स्मृति सिंह एक सफ़ेद साड़ी पहने हुए थीं, जो उनके दुःख और साहस का प्रतीक थी। स्मृति ने अपने पति के बारे में एक मार्मिक विडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने अंशुमान सिंह के वे शब्द याद किए, जो उन्होंने अक्सर कहा करते थे, 'मैं साधारण मौत नहीं मरूंगा।' ये शब्द उनकी बहादुरी और समर्पण की गाथा को बयाँ करते हैं।

समारोह के दोरान स्मृति ने अपने जीवन के खास पल भी साझा किए, जैसे जब वे पहली बार मिले, उन्होंने कैसे संवाद किया और वे जल्द ही आत्मा के साथी बन गए। यह विडियो समारोह में मौजूद हर व्यक्ति के दिलों को छू गई, और एक शहीद की पत्नी के रूप में उनके अनुभव का जीवंत चित्रण किया।

वीरता और सेवा की अनूठी कहानी

कैप्टन अंशुमान सिंह एक समर्पित सेनानी और प्यार करने वाले पति थे। उन्होंने अपने जीवन का हर पल देश की सेवा में बिताया। उनके साथी उन्हें एक निर्भीक और अद्वितीय योद्धा के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने कभी भी किसी चुनौती से पीछे हटने का नाम नहीं लिया। उनकी वीरता और समर्पण ने उन्हें अपने साथियों और परिवार के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया।

समारोह के बीच में, स्मृति ने यह भी याद किया कि कैसे अंशुमान हमेशा कहते थे, 'मैं साधारण मौत नहीं मरूंगा, मेरे सीने पर हमेशा विकास (ब्रास) का चिन्ह रहेगा।' यह वाक्यान उनके आत्म-विश्वास और वीरता की अद्भुत गाथा को परिभाषित करता है।

अंशुमान सिंह की यादें आज भी जीवित हैं

कैप्टन अंशुमान सिंह की यादें अभी भी उनके परिवार और प्रियजनों के दिलों में जीवित हैं। उनकी कहानी न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो देश की सेवा और बलिदान की मूल्यों वाली परंपरा को मानते हैं। उनकी यादों को सजीव रखने के लिए यह सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें उनके योगदान और बलिदान का सम्मान किया गया।

वह दिन जब कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत किरती चक्र से सम्मानित किया गया, वह न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का दिन था। उनकी पत्नी स्मृति सिंह ने जब यह सम्मान स्वीकार किया, तो उन्होंने देशभर के लोगों के दिलों में अपने पति के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को और गहरा कर दिया।

सम्मान और गर्व का पल

सम्मान और गर्व का पल

इस स्नेहमय और सम्मानजनक समारोह ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश के सैनिक केवल युद्ध के मैदान में ही ना रहें, बल्कि उनके योगदान और बलिदान की कहानियां भी एक अमर धरोहर के रूप में जीवित रहें। यह सम्मान समारोह एक अवसर था जब देश ने अपने वीर सपूत को नमन किया, और उनकी पत्नी ने अपनी मजबूत धैर्य और साहस के साथ अपने पति की सेवा और समर्पण को स्वीकार किया।

स्वयं स्वीकार किया कि उनके पति ने अपने सिद्धांतों और आदर्शों के साथ जीवन जीया और अपनी अंतिम सांस तक देश की सेवा की।

कैप्टन अंशुमान सिंह की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि हमारे सैन्य बल केवल हमारे देश की रक्षा नहीं करते, बल्कि वे हमारे समाज के उच्चतम मूल्यों का भी पालन करते हैं। यह उनके अद्वितीय योगदान का सम्मान है कि देश ने उन्हें किरती चक्र से सम्मानित किया।

16 टिप्पणि

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    Riya Patil

    जुलाई 8, 2024 AT 12:18

    कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरता का सम्मान हमेशा दिल में रहेगा, उनका साहस हम सभी को प्रेरित करता है। उनके आदर्शों को हम कभी नहीं भूलेंगे।

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    naveen krishna

    जुलाई 18, 2024 AT 18:42

    उनकी शहादत हमारे राष्ट्र की शक्ति का प्रमाण है, हम सभी इस गर्व को साझा करते हैं। यह सम्मान उनके साहस का सच्चा परिचायक है :)

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    Disha Haloi

    जुलाई 29, 2024 AT 01:06

    देशभक्तों के रूप में हमें उनका स्मरण करना कर्तव्य है; अंशुमान जी के शब्दों में निहित अडिग साहस हमें स्वाधीनता की असली कसौटी दिखाता है। उनका “साधारण मौत नहीं मरूँगा” वचन दर्शाता है कि वास्तविक शहीद वही है जो अपना कल्याण नहीं, बल्कि राष्ट्र को प्राथमिकता देता है। कोई भी इस त्याग को कम नहीं आँक सकता, यह इतिहास का अनिवार्य सत्य है।

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    Mariana Filgueira Risso

    अगस्त 8, 2024 AT 07:30

    स्मृति जी का संदेश हमें याद दिलाता है कि साहस केवल युद्ध में नहीं, बल्कि दैनिक संघर्षों में भी होता है। परिवार और राष्ट्र दोनों को जोड़े रखने वाला यह बलिदान हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा देता है। हम सभी को इस प्रेरणा से अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए।

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    Dinesh Kumar

    अगस्त 18, 2024 AT 13:54

    वीरों का बलिदान ही राष्ट्र की आत्मा को दृढ़ बनाता है।
    अंशुमान साहब ने जो सिद्धांत अपनाया, वह केवल व्यक्तिगत अभिलाषा नहीं, बल्कि सामूहिक उत्थान का मार्ग था।
    उनकी यह मान्यता कि “मैं साधारण मौत नहीं मरूँगा” हमारे लिए एक उच्चतम नैतिक मानक स्थापित करती है।
    जब हम उनके जीवन को देखते हैं, तो समर्पण का एक नया परिपेक्ष्य सामने आता है।
    उनका साहस हमें सिखाता है कि कठिनाइयों के सामने झुकना नहीं, बल्कि खड़े होना आवश्यक है।
    इस प्रकार का आत्मसमर्पण केवल युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि हर रोज़ के छोटे‑छोटे निर्णयों में भी प्रकट होता है।
    उनका दृढ़ संकल्प यह दर्शाता है कि लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना ही सफलता की कुंजी है।
    हमें उनके उदाहरण से प्रेरित होकर अपने कार्यों में ईमानदारी और निष्ठा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    एक सच्चा शहीर वह है जो अपने परिवार, समाज और देश की भलाई को प्रथम स्थान देता है।
    अंशुमान जी का जीवन हमें यह भी दिखाता है कि प्रेम और कर्तव्य समानांतर नहीं बल्कि आपस में जुड़े हुए हैं।
    उनका साक्ष्य यह है कि प्रेम में भी साहस की आवश्यकता होती है, जब वह अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हो।
    इस बलिदान को याद रखने से हमें भविष्य में समान चुनौतियों का सामना करने का साहस मिलता है।
    उनकी स्मृति में हम न केवल उनका सम्मान करते हैं, बल्कि उनके आदर्शों को अपनी जिंदगी में अपनाते हैं।
    इस प्रकार का सम्मान न केवल एक पुरानी परंपरा है, बल्कि यह एक जीवित प्रेरणा है जो आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दिखाती है।
    हमें यह समझना चाहिए कि उनका योगदान केवल सैन्य क्षेत्रों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों को भी सुदृढ़ करता है।
    अंत में, उनका अडिग साहस हमें यह सिखाता है कि सच्ची वीरता हमेशा दिल से आती है, न कि केवल शब्दों से।

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    Hari Krishnan H

    अगस्त 28, 2024 AT 20:18

    सच में, अंशुमान साहब की कहानी हमें खुद को बेहतर बनाने की प्रेरणा देती है, चलो हम भी अपने छोटे‑छोटे कामों में ही सही, उनका सम्मान करें।

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    umesh gurung

    सितंबर 8, 2024 AT 02:42

    भारत की शौर्य गाथा, आज भी गूंजती है, कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरता, एक अद्भुत मिसाल है, जो हमें दिखाती है कि कर्तव्य निष्ठा के साथ, कभी भी नहीं झुकना चाहिए, उनका बलिदान, राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, सभी को गर्व महसूस होता है, जय हिन्द!

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    sunil kumar

    सितंबर 18, 2024 AT 09:06

    ऑपरेशनल लीडरशिप के दायरे में, अंशुमान जी ने स्ट्रैटेजिक एन्डिसी को परिभाषित किया, उनका “ब्रास” सिग्नल, एक टैक्टिकल सिग्नल था जो कॉम्प्लेक्स मट्रिक्स में भी भरोसा स्थापित करता था। इस नरेशन को देखते हुए, हम कह सकते हैं कि उनका इम्प्लीमेंटेशन फॉर्मेट, हाई‑रिस्क सिचुएशन में भी एडैप्टिव रेजिलियंस को एंगेज करता है。

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    prakash purohit

    सितंबर 28, 2024 AT 15:30

    शायद इस पूरे समारोह में कुछ छिपी हुई एजेंडा है, सरकार अक्सर दैत्य की तरह इन शहीदों को राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है; हमें सच्ची जानकारी चाहिए, नहीं तो हम बेवकूफ बने रहेंगे।

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    Darshan M N

    अक्तूबर 8, 2024 AT 21:54

    वीर का सम्मान करना जरूरी है लेकिन इतना शोख न बनो ये सब भावनाओं को संभाल कर रखना चाहिए

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    manish mishra

    अक्तूबर 19, 2024 AT 04:18

    सबकी तो बड़ाई है, पर कभी‑कभी ऐसा लगता है कि इन पुरस्कारों में भी राजनीति की डालें घुस जाती हैं :)

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    tirumala raja sekhar adari

    अक्तूबर 29, 2024 AT 10:42

    बिलकल्‍ले शहादत का हे मजा . इत्तेफाक क बारे मे सोचते हि नहिन चाहिए .

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    abhishek singh rana

    नवंबर 8, 2024 AT 17:06

    सबको याद रखना चाहिए, कि अंशुमान जी ने जो किया वह सिर्फ़ एक मिशन नहीं, बल्कि एक उदाहरण है, हमें भी अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए, यही असली सम्मान है।

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    Shashikiran B V

    नवंबर 18, 2024 AT 23:30

    वास्तव में, इतिहास के अनुक्रम में ऐसे नायक हमेशा होते हैं; पर सवाल यह है कि उनका उपयोग किस दिशा में किया जाता है, सोचने की जरूरत है।

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    Sam Sandeep

    नवंबर 29, 2024 AT 05:54

    यहाँ सबका मानवीय अटूट बंधन नहीं है, यह एक वाणिज्यिक प्रस्तुति है, नैतिक अडिगता के नाम पर पूंजी की मरम्मत है।

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    Ajinkya Chavan

    दिसंबर 9, 2024 AT 12:18

    सबको मिलके इस शहीद की याद को सच्चे इरादे से फॉलो करना चाहिए, कोई भी हल्का‑फुल्का नहीं हो सकता, हमें एकजुट रहना बहुत ज़रूरी है।

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