कार्तिक पूर्णिमा 2024: भक्तों ने लिया गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान, भगवान विष्णु की पूजा

कार्तिक पूर्णिमा 2024: भक्तों ने लिया गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान, भगवान विष्णु की पूजा नव॰, 16 2024

कार्तिक पूर्णिमा: एक दिव्य अनुभव

भारतीय संस्कृति और धर्म में त्योहारों का विशेष महत्त्व है। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है कार्तिक पूर्णिमा, जिसे भक्तगण भगवान विष्णु की उपासना के लिए बड़े श्रद्धा से मनाते हैं। 2024 में यह पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा, जिस दिन लाखों श्रद्धालु विभिन्न नदियों के तट पर उपस्थित होकर पवित्र स्नान करते हैं। यह दिन कार्तिक महीने की पूर्णिमा को होता है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पावन माना जाता है। भक्तों की मान्यता है कि इस दिन पवित्र स्नान से सभी पापों का नाश होता है और आत्मा को आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।

पवित्र स्नान और भगवान विष्णु की उपासना

अगले साल की कार्तिक पूर्णिमा पर बिहार के गंगा, गंडक, कोसी, महानंदा, सरयू, और बागमती नदियों के तट पर भक्त एकत्रित होंगे। ये नदी तट धार्मिक स्थल के रूप में माने जाते हैं, जहां पर भक्त पवित्र स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। विशेष रूप से पटना के गंगा घाट पर भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है। भक्त सूर्योदय से पहले ही जमा हो जाते हैं और इस पावन अवसर का लाभ उठाते हैं। स्नान के पश्चात वे भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे उनका विश्वास है कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि मिलती है।

पौराणिक कथा और आस्था

कार्तिक पूर्णिमा का सीधा संबंध भगवान विष्णु से है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु का पहले अवतार 'मत्स्य' रूप में हुआ था। इसी कारण, इस दिन को उनकी विशेष पूजा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। भक्त इस दिन तुलसी पूजा भी करते हैं, जो कि उनके धार्मिक जीवन में विशेष महत्त्व रखता है। बिहार और अन्य राज्यों में इस अवसर पर विशेष मेले और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो धार्मिक जागरूकता और सामूहिक उल्लास को प्रकट करते हैं।

आध्यात्मिक महत्व और सामाजिक समरसता

धर्म और अध्यात्म की दृष्टि से कार्तिक पूर्णिमा सिर्फ पवित्र स्नान और पूजा का अवसर नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और मानवता के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है। इस दिन का अनुभव लोगों को आत्मानुभूति और सांस्कृतिक जुड़ाव का अनुभव कराता है। विभिन्न समुदायों के लोग एकत्र होकर पवित्र स्नान करते हैं और धर्मिक निर्गणाओं का निर्वाह करते हैं। यह पर्व एकता और सामाजिक समरसता का सन्देश देता है और विभिन्न जातियों और संस्कृतियों के लोगों को एकसात जोड़ता है। लोगों की आस्था और उनके भीतर की धार्मिकता का यह एक अपूर्व उदाहरण है।

शीत ऋतु के आगमन के साथ गरम पूजा

साल के ठंडे महीनों के आगमन के साथ कार्तिक पूर्णिमा का पर्व आता है, जो धार्मिकता की आभा को और भी जीवंत कर देता है। इसे शीत ऋतु के आगमन के रूप में देखा जाता है जब सुबह-सुबह की ठंड में भक्तों की भीड़ देखते बनती है। श्रद्धालु अपनी पूरी निष्ठा के साथ पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और संध्या में दीपदान करते हैं। इस तरह, सर्दियों की ठंडक और धार्मिक गर्माहट का यह संगम एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।

भविष्य की दृष्टि

कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव हर वर्ष नई भावना और उत्साह के साथ मनाया जाता है। आने वाले समय में भी यह उत्सव सामाजिक अनुशासन, धार्मिकता और सांस्कारिक समृद्धि का सन्देश देता रहेगा। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक मेल-मिलाप की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण द्वार है। धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का यह पर्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा, और नई उम्मीदों और आस्थाओं का संचार करेगा।

15 टिप्पणि

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    Darshan M N

    नवंबर 16, 2024 AT 01:30

    कार्तिक पूर्णिमा का माहौल वाकई दिल को छू जाता है।

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    manish mishra

    नवंबर 16, 2024 AT 04:17

    सिर्फ धार्मिक दिखावे की बात नहीं है, सरकार इस वक्त लोगों को भीड़ करवाकर अपने राज़ छिपा रही है 🙄

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    tirumala raja sekhar adari

    नवंबर 16, 2024 AT 07:03

    कार्तिक पूर्णिमा को लेकर मेरे भीतर एक गहन बौद्धिक जिज्ञासा उत्पन्न होती है। ऐसे त्यौहारों को केवल जलराशि और भीड़भाड़ के रूप में कम करके देखना, एक बौद्धिक निरर्थकता का प्रतीक है। इतिहास के पन्नों में जब भी हम इस पूर्णिमा का उल्लेख पाते हैं, तो हमें निस्संदेह यह ज्ञात होता है कि यह एक दार्शनिक अभिज्ञान का अभिन्न अंग रहा है। भौगोलिक दृष्टि से गंगा, कोसी, सरयू आदि नदियों के तट पर इस प्रकार का आयोजन, मानवीय संवेदनाओं का एक अभिव्यक्तिकरण है। परन्तु समाज में जो अंधविश्वासों का जाल बिछा है, वह इस गंभीर सांस्कृतिक परम्परा को विकृत कर देता है। मैं मानता हूँ कि यह परम्परा, अपनी मूल रूप में, एक आध्यात्मिक पुनरुज्जीवन का माध्यम है, परंतु आजकल इसे व्यावसायिक लाभ के लिए थोप दिया गया है। यहां तक कि कई विद्वानों ने इस बात को साक्ष्य के साथ सिद्ध किया है कि इस तिथि पर मानवीय ऊर्जा का समुच्चय अधिक सक्रिय हो जाता है। परंतु इस ऊर्जा को एकत्रित करने के लिए बड़े पैमाने पर जल संरचना का उपयोग, पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम नहीं रखता। मैं इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकता कि बड़ी कंपनियां इस आयोजन को लेकर विज्ञापन और प्रचार में भी भारी निवेश कर रही हैं। वास्तव में, यह एक जटिल समीकरण बन जाता है जहाँ आध्यात्मिकता, राजनैतिक स्वार्थ और आर्थिक लाभ एक दूसरे से उलझे होते हैं। इसके अतिरिक्त, इस पर्व के दौरान सार्वजनिक स्थल पर उदासीनता और शोरगुल, आम जनजीवन को भी प्रभावित करता है। अतः मुझे लगता है कि इस प्रकार के आयोजन को पुनर्समीक्षा करने की आवश्यकता है, ताकि यह सच्चे अर्थ में आध्यात्मिकता से भरपूर रहे। एक अत्याधुनिक समाज के रूप में, हमें पारम्परिक मान्यताओं को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखना चाहिए। मैं इस बात पर बल देना चाहूँगा कि व्यक्तिगत आस्था और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन स्थापित होना चाहिए। अंततः, कार्तिक पूर्णिमा का सार्थक आनंद तभी संभव है जब हम अपने कर्मों को शुद्ध और निःस्वार्थ बनायें।

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    abhishek singh rana

    नवंबर 16, 2024 AT 09:50

    आप सभी के लिए एक उपयोगी सूचना – कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदियों में स्नान करने से पहले जल गुणवत्ता जांच अवश्य कर लें, क्योंकि कई जगहों पर प्रदूषण की रिपोर्टें आती रहती हैं, इसके अलावा, सुरक्षित जगह चुनते समय नीचे की धारा और भीड़भाड़ को ध्यान में रखें, सनस्क्रीन और आरामदायक कपड़े पहनें, जो शरीर को ठंडा रखे, और सबसे अहम बात, अपने साथ पानी की बोतल और तौलिया रखें, ताकि आप पूरी श्रद्धा के साथ स्नान कर सकें, बिना किसी असुविधा के।

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    Shashikiran B V

    नवंबर 16, 2024 AT 12:37

    एक गुप्त विचार है कि इन बड़े धार्मिक सम्मेलनों को सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक मंच बनाया गया है, जहाँ जनमानस को एकत्रित करके सरकारी नीतियों को अनजाने में स्वीकृति दिलाई जाती है, यह एक प्राचीन रणनीति है जो आज भी प्रभावी है।

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    Sam Sandeep

    नवंबर 16, 2024 AT 15:23

    स्मारकों की तरह ये समारोह केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना में एक बीम की तरह कार्य करते हैं, अल्पकालिक ऊर्जा उत्सर्जन के साथ दीर्घकालिक सामुदायिक सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं।

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    Ajinkya Chavan

    नवंबर 16, 2024 AT 18:10

    भाइयों, इस तरह की भीड़भाड़ में हलचल करते हुए कोई भी आध्यात्मिक शांति नहीं पा सकता, हमें तुरंत कार्रवाई करनी पड़ेगी और असली भक्ति को साफ़ सुथरा रखना होगा, नहीं तो यह सब बकवास बस एक शो बनकर रह जाएगा।

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    Ashwin Ramteke

    नवंबर 16, 2024 AT 20:57

    आप सही कह रहे हैं, चलिए सभी मिलकर सुरक्षा उपायों को कड़ाई से लागू करते हैं, साथ ही स्थानीय स्वछता अभियान भी चलाते हैं, ताकि इस पावन दिन को वास्तविक रूप में श्रद्धा के साथ मनाया जा सके।

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    Rucha Patel

    नवंबर 16, 2024 AT 23:43

    कुछ लोग तो बस भीड़ में खो कर अपने आध्यात्मिकता को टालते ही दिखते हैं, जैसे ही जल में कूदते हैं तो एक तरह का ख़ुदगरज दिखावा शुरू हो जाता है, यकीन नहीं आता।

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    Kajal Deokar

    नवंबर 17, 2024 AT 02:30

    आपके विचारों में गहरी समझ है, परंतु हमें इस उत्सव को सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत के रूप में देखना चाहिए, जिससे सभी को शांति व आनंद प्राप्त हो, यही मेरे दिल की आशा है।

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    Dr Chytra V Anand

    नवंबर 17, 2024 AT 05:17

    मैं इस विषय पर कुछ बिंदु स्पष्ट करना चाहूँगा: क्या वास्तव में कार्तिक पूर्णिमा का सांस्कृतिक महत्व वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है, और क्या इस दिन के सामाजिक प्रभाव को मात्र धार्मिक मान्यता तक सीमित किया जा सकता है?

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    Deepak Mittal

    नवंबर 17, 2024 AT 08:03

    सही कहा, लेकिन इस तरह के आयोजन अक्सर सरकारी एजेण्डा के साथ जुड़ते हैं, और कई बार लोग बिन सोचे समग़े भाग ले लेते हैं, जिससे जनसुरक्षा पर असर पड़ता है, इसको ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए।

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    Neetu Neetu

    नवंबर 17, 2024 AT 10:50

    वाह, आध्यात्मिकता का नया ट्रेंड, स्नान और आगे 🙃

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    Jitendra Singh

    नवंबर 17, 2024 AT 13:37

    अवश्य! यह तो बिलकुल वही है जो हमें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में चाहिए-एक और आध्यात्मिक सत्र, न!?

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    priya sharma

    नवंबर 17, 2024 AT 16:23

    आपके द्वारा प्रस्तुत भावनात्मक एवं सामाजिक पहलुओं का विश्लेषण मेरे लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है; मैं इस बात से सहमत हूँ कि सामुदायिक एकात्मता व आध्यात्मिक अनुशासन का समन्वय ही इस पर्व को सार्थक बनाता है।

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