दिल्ली सीएम के आधिकारिक बंगले पर पीडब्ल्यूडी की सील, एलजी के आदेश पर सामान फेंकने का आरोप

दिल्ली सीएम के आधिकारिक बंगले पर पीडब्ल्यूडी की सील, एलजी के आदेश पर सामान फेंकने का आरोप अक्तू॰, 11 2024

दिल्ली के सियासी गलियारों में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री आतिशि के आधिकारिक आवास को लेकर उठे विवाद ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है। बुधवार को लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने दिल्ली के सिविल लाइन्स इलाके में स्थित मुख्यमंत्री आतिशि के आधिकारिक बंगले को सील कर दिया। आरोप है कि यह सब उपराज्यपाल (एलजी) के निर्देश पर हुआ। आम आदमी पार्टी (आप) ने आरोप लगाया है कि एलजी के आदेश पर आतिशि के सामान को आवास से बाहर फेंक दिया गया।

यह बंगला पहले अरविंद केजरीवाल का आधिकारिक निवास था। अब जब केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं हैं, तो यह बंगला खाली किया गया है। इस्तीफे के बाद यह बंगला आतिशि को सौंप दिया गया, लेकिन इसकी औपचारिक प्रक्रिया पीडब्ल्यूडी के माध्यम से नहीं की गई, जिससे विवाद पैदा हो गया।

आम आदमी पार्टी की तरफ से दावा किया जा रहा है कि यह विवाद सिर्फ राजनीतिक साजिश है। पार्टी ने जोर देकर कहा कि भाजपा इस मुद्दे के माध्यम से आतिशि को टार्गेट कर रही है। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने दस्तावेज़ दिखाकर दावा किया कि केजरीवाल ने इस बंगले को आधिकारिक तौर पर खाली कर दिया था और भाजपा अधिकारियों पर दबाव डालकर इसे आतिशि को नहीं देने की कोशिश कर रही है।

इस बीच, भाजपा के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने सवाल उठाया कि अगर पीडब्ल्यूडी को चाबी दी जानी थी, तो यह आतिशि को क्यों दी गई? भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने भी आरोप लगाया कि यह बंगला अभी भी केजरीवाल के पास है और इसे आतिशि को देने का तरीका असंवैधानिक है।

विपक्षीत दलों के आरोप के जवाब में, आप पार्टी ने यह कहा है कि आतिशि को अब तक बांध के अनुसार बंगला आधिकारिक रूप से नहीं सौंपा गया है। इसके बजाय, यह पुराना मामला उठाकर भाजपा इसे हड़पने की कोशिश कर रही है।

यह विवाद दिल्ली की राजनीतिक खींचतान को उजागर कर रहा है, जहां आप और भाजपा की टकराव की स्थिति बनी रहती है। इस पूरी घटना ने दोनों पार्टियों के बीच गहरे तनाव और आरोप-प्रत्यारोप के खेल को और बढ़ा दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर आने वाले दिनों में क्या रुख अपनाया जाता है।

9 टिप्पणि

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    Rucha Patel

    अक्तूबर 11, 2024 AT 10:33

    राजनीतिक गुत्थियों में अक्सर सच्चाई को मौन किया जाता है। इस मामले में पीडब्ल्यूडी की कार्रवाई को पक्षपाती माना जा सकता है। आधिकारिक प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव स्पष्ट है। जनता को इस तरह की रणनीति से बचना चाहिए।

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    Kajal Deokar

    अक्तूबर 11, 2024 AT 12:46

    आदरणीय मित्रों, इस विवाद के मूल में प्रशासनिक प्रोटोकॉल की उपेक्षा निहित प्रतीत होती है। यह न केवल कानूनी दायरे को चुनौती देता है, बल्कि संपूर्ण शासन व्यवस्था की विश्वसनीयता को भी चोट पहुंचाता है। सभी संबंधित पक्षों को मिलजुल कर इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना चाहिए, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सके।

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    Dr Chytra V Anand

    अक्तूबर 11, 2024 AT 15:00

    सिविल लाइन्स का वह बंगला वास्तव में एक संवेदनशील मुद्दा है। उचित दस्तावेज़ीकरण के बिना हस्तांतरण अस्वीकार्य है।

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    Deepak Mittal

    अक्तूबर 11, 2024 AT 17:13

    देखो भाई, ये सब सरकारी पापी जालों की कहानी है, पीडब्ल्यूडी वाले फालतू कागजों पे दांव लगा रहे हैं, जैसे कि कोई षड्यंत्र चल रहा हो। एलजी के हुक्म से आज़ादी नहीं, बल्कि एक बड़ा साजिश का पर्दाफाश है! किसी को पता है कि कहाँ से ये झूठी रिपोर्ट आती है? सरकार की अंतहीन गद्दारी, बेफिकीर ट्रैप!

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    Neetu Neetu

    अक्तूबर 11, 2024 AT 19:26

    बिलकुल, यही तो दिख रहा है 😒

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    Jitendra Singh

    अक्तूबर 11, 2024 AT 21:40

    हाथ जोड़कर कहना पड़ रहा है, यह पूरे मामला एकदम ही बकवास है!!! सरकार की बेवकूफ़ी के स्तर को देख कर दिल दहला देता है!!! क्या सोचते हैं ये लोग, जनता को ऐसी हरकतों से बचाकर रखेंगे?!!!

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    priya sharma

    अक्तूबर 11, 2024 AT 23:53

    पीडब्ल्यूडी द्वारा बंगलों का सील करना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसे कानूनी ढांचे में परिभाषित किया गया है।
    इस प्रक्रिया में अनुशासनात्मक प्रोटोकॉल, दस्तावेज़ीकरण, और समयसीमा का पालन अनिवार्य है।
    यदि किसी आधिकारिक निवास को औपचारिक रूप से हस्तांतरित नहीं किया गया, तो संबंधित विभाग को सूचित करने का दायित्व होता है।
    दिल्ली के सिविल लाइन्स में स्थित बंगला पहले केजरीवाल सरकार का था, जिसे खाली करने के पश्चात नई सरकार को सौंपा जाना चाहिए था।
    आधिकारिक हस्तांतरण में एसीसीएस फॉर्म, औपचारिक मंजूरी, और टू-डू लिस्ट शामिल होते हैं।
    यदि इस चरण को स्किप किया गया, तो यह प्रशासनिक लापरवाही के दायरे में आता है।
    ऐसी लापरवाही का दायित्व अक्सर पीडब्ल्यूडी या अधिनियमित प्राधिकरण पर रखा जाता है।
    राजनीतिक दल अक्सर ऐसी लापरवाही को अपनी वैध आलोचना के रूप में उपयोग करते हैं, जिससे सार्वजनिक राय प्रभावित होती है।
    आप पार्टी का यह तर्क कि यह साजिश है, एक सामान्य पोलिटिकल रीजनलाइज़ेशन कहा जा सकता है।
    वहीं भाजपा का यह कहना कि यह कार्रवाई असंवैधानिक है, प्रशासनिक वैधता को चुनौती देता है।
    क़ानून के अनुसार, किसी भी सरकारी संपत्ति के हस्तांतरण में प्राथमिक अनुमति आवश्यक होती है।
    यदि दस्तावेज़ी प्रमाण नहीं हैं, तो यह मुद्दा क़ानूनी जाँच का कारण बन सकता है।
    ऐसी जाँच में पीडब्ल्यूडी के कार्यप्रणाली, आदेश श्रृंखला, और अनुशासनात्मक रिपोर्ट को अध्ययन किया जाता है।
    कुल मिलाकर, यह मामला प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, और राजनैतिक अनावश्यकता को उजागर करता है।
    भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए स्पष्ट SOPs और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम की आवश्यकता है।
    निराकरण के तौर पर, एक स्वतंत्र निगरानी समिति गठित की जानी चाहिए, जो सभी दस्तावेज़ों की वैधता की पुष्टि करे।

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    Ankit Maurya

    अक्तूबर 12, 2024 AT 02:06

    ऐसे मामलों में राष्ट्र की गरिमा को कोई समझता नहीं, तुरंत आप कार्रवाई करें और इस तरह की गड़बड़ी को रोकें।

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    Sagar Monde

    अक्तूबर 12, 2024 AT 04:20

    हाहा ये तो बस एक और झुंझट है भाई

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