अपरा एकादशी 2024: कथा, महत्व और इस शुभ दिन पर क्या करें दान
जून, 2 2024अपरा एकादशी का महत्त्व और इसका पौराणिक प्रसंग
अपरा एकादशी हिंदू धर्म में एक पहुँचना विशिष्ट महत्त्व रखती है। इस व्रत का पालन ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है और इसे सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत माना जाता है। 2024 में यह व्रत 2 जून को मनाया जाएगा। इसके संदर्भ में यह कहा जाता है कि अपरा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सभी पुराने कर्मों के बुरे फल से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, महिध्वज नामक एक राजा थे जो अपनी दयालुता और सच्चाई के लिए प्रसिद्ध थे। उनके सौतेले और जललायु भाई बृजध्वज ने ईर्ष्या के कारण अपनी क्रूरता दिखाते हुए उन्हें मार डाला। महिध्वज की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी और उनकी आत्मा एक भूत के रूप में बदल गई। इसी बीच धाउम्य नामक एक संत ने महिध्वज की इस विवानुभूत कहानी को सुनकर उन्हें समाधान देने का सुझाव दिया। धाउम्य ने महिध्वज को अपरा एकादशी का व्रत रखने के लिए प्रेरित किया, जिसके कारण महिध्वज को उनकी भूतिया अवस्था से मुक्ति मिली और वे जीते जी प्राप्त पुण्य के परिणामस्वरूप स्वर्ग की प्राप्ति कर सके।
व्रत का विधि और दान की महत्ता
अपरा एकादशी व्रत की प्रक्रिया अत्यंत सरल मानी जाती है लेकिन इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करना आवश्यक है। एकादशी तिथि का समय 2 जून 2024 को प्रातः 05:04 बजे से प्रारंभ होगा और 3 जून को 02:41 बजे समाप्त होगा। इस दिन व्रत धारण करने वाले व्यक्ति को निराहार रहना चाहिए और भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। मन:स्वीचरण और त्याग का व्रत लेने वाले व्यक्ति को पूर्ण रूप से पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
अगले दिन पारणा की प्रक्रिया रखनी चाहिए, जो विशेष रूप से मौखिक पटन से शुरू होती है। व्रत पारणा का समय 3 जून 2024 को प्रातः 08:05 बजे से 08:10 बजे तक होता है। पारणा के बाद व्रती को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए दान पुण्य के लिए तत्पर रहना चाहिए।
दान की महत्ता और सामग्री
अपरा एकादशी के दिन दान करने का अत्यधिक महत्त्व होता है। इस दिन तिल, भोजन, वस्त्र, छाता और बिस्तर जैसी आवश्यक सामग्रियों का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यह सभी वस्तुएँ रोजमर्रा की आवश्यकताएँ हैं और इन्हें दान करने से निर्धन और जरूरतमंद लोगों की मदद होती है।
तिल एक महत्वपूर्ण सामग्री है जिसे अपरा एकादशी के दिन विशेष रूप से दान करना चाहिए। तिलो के दान का संकल्प इस अर्थ में विशेष होता है कि यह व्यक्ति के सभी पापों को दूर करने का प्रतीक है। तिल से निर्मित भोजन का भी दान किया जा सकता है, जिससे भूखे लोगों के बीच भोजन का वितरण हो सके। इसके अलावा वस्त्र, छाता और बिस्तर का दान भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह दूसरों को उनकी जरूरतें पूरी करने में सहायता करता है।
अपरा एकादशी का प्रभाव और महत्व
अपरा एकादशी व्रत केवल धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक लाभों के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्तर पर, अपरा एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है। व्रतधारण करने वाले को अपने आहार पर संयम और ध्यान केंद्रित करने की आदत पड़ती है, जो शरीर को विषमुक्त और स्वच्छ रखती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से अपरा एकादशी के दिन दान पुण्य का विशेष महत्त्व होता है। इस पर्व पर दिए गए दान से समाज में जाति-वर्ग भेदभाव मिटाने और समरसता बढ़ाने का प्रयास होता है। दान का यह कार्य समाज के सभी वर्गों में समानता और एकत्रता की भावना को बढ़ावा देता है।
अपरा एकादशी तिथियों और इसके नियम व्रत की सार्थकता को और भी अधिक बढ़ा देते हैं। यह पर्व हिंदू समाज के धार्मिक महत्व को प्रकट करता है और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
सारांश
अपरा एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जो लोगों को धार्मिक और नैतिक जीवन की दिशा में प्रेरित करता है। इसका व्रत और दान समाज को एक अच्छा संदेश देते हैं और सभी को एक सूत्र में बांधते हैं। अपरा एकादशी व्रत करने से न केवल व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन भी आते हैं।